☝Ba 2nd Year मोस्ट इम्पोर्टेन्ट प्रश्न से है?



प्रश्न- प्रथ्वी के दो प्रमुख घटक कौन से है?

उत्तर -1.भौतिक घटक 

2.मानव घटक 

प्रश्न- लिंग अनुपात निम्न में से क्या प्रकट करता है?

उत्तर-स्त्रियों और पुरुषो के बीच की संख्या के अनुपात को|

प्रश्न- लिंग अनुपात का स्त्रियों के प्रतिकूल होने का निम्न में से क्या कारण है?

उत्तर- स्त्री भूर्ण हत्या 

प्रश्न- निम्न में से किस देश में लिंग अनुपात न्यूनतम है?

उत्तर-सयुक्त राज्य अमेरिका 

प्रश्न-विकाश का अर्थ निम्न में से क्या है?

उत्तर-वृध्धि से 

Q.1. आर्थिक भूगोल को परिभाषित कीजिए। 

उत्तर :- आर्थिक भूगोल मानव भूगोल की एक महत्वपूर्ण शाखा है। इसमें मनुष्य के आर्थिक क्रिया-कलापों (उसके भरण-पोषण, भोजन, वस्त्र, आवास तथा अन्य आरामदायक व विलासिता की आवश्यकता पूर्ति से सम्बन्धित) तथा आर्थिक विकास के स्तर का अध्ययन किया जाता है। प्राकृतिक, जैविक, मानवीय एवं आर्थिक तत्वों और क्रियाओं में एक स्थान | से दूसरे स्थान पर भिन्नता होती है, अत: इनका पारस्परिक सम्बन्ध भी भिन्न होता है, जिसके कारण मानव की आर्थिक क्रियाओं एवं आर्थिक विकास के स्तर में भी भिन्नता प्राप्त होती है, | आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत इन्हीं क्षेत्रीय आर्थिक भिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है।

Q. 2. प्रादेशिक विकास का अर्थ समझाइये।
उत्तर :-  सामान्यतः नियोजन के दो उपगमन होते हैं: खंडीय (Sectoral) नियोजन और प्रादेशिक नियोजन। खंडीय नियोजन का अर्थ है- अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों, जैसे- कृषि, सिंचाई, विनिर्माण, ऊर्जा, निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना तथा उनको लागू करना।

किसी भी देश में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हैं तो कुछ पिछड़े हुए हैं। विकास का यह असमान प्रतिरूप (Pattern) सुनिश्चित करता है कि नियोजक एक स्थानिक परिप्रेक्ष्य अपनाएँ तथा विकास में प्रादेशिक असंतुलन कम करने के लिए योजना बनाएँ। इस प्रकार के नियोजन को प्रादेशिक नियोजन कहा जाता है।
Q.3. विश्व में लोहा-इस्पात उद्योग के स्थानीयकरण एवं विकास का विवरण दीजिए। 
उत्तर :- लौह इस्पात उद्योग को किसी देश के अर्थिक विकास की धुरी माना जाता है। यह एक आधारभूत उद्योग हैं क्योंकि इसके उत्पाद बहुत से उद्योगों के लिये आवश्यक कच्चे माल के रूप में प्रयुक्त होते हैं। भारत में इसका सबसे पहला बड़े पैमाने का कारख़ाना 1907 में झारखण्ड राज्य में सुवर्णरेखा नदी की घाटी में साकची नामक स्थान पर जमशेदजी टाटा द्वारा स्थापित किया गया गया था। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत इस पर काफ़ी ध्यान दिया गया और वर्तमान में 7 कारखानों द्वारा लौह इस्पात का उत्पादन किया जा रहा है। लोहा इस्पात अनेक छोटे-बड़े उद्योगों की आधारभूत सामग्री है। सूई से लेकर पोत निर्माण तक लोहा इस्पात उद्योग पर ही आश्रित है। किसी देश के औद्योगिक विकास का मापदंड वहां का लोहा इस्पात ही है। वास्तव में आज हम लोहा इस्पात युग में जी रहे हैं।लोहा एवं इस्पात आधुनिक सभ्यता के लिए वरदान ही नहीं बल्कि दैनिक जीवन की अनिवार्य वस्तु बन गया है। विश्व के कुल धातु उत्पादन का 90% से अधिक लोहा होता है और आर्थिक एवं तकनीकी विकास के साथ साथ इसका उत्पादन और इसकी मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जाती है। इसे आधुनिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है।
लोहा तथा इस्पात बनाने के लिए लौह अयस्क से लौहाशं को कोक, चारकोल, चूना पत्थर आदि मिलाकर भट्टी में प्रगलन के लिए झोंका जाता है। इसे अत्यधिक तापमान पर पिलाने के लिए गर्म हवा, ऑक्सीजन अथवा ट्रेन के तीव्र झोंको द्वारा भट्टियों में डाला जाता है। इन भट्टियों को झोंका भट्टी कहते हैं। पिघला हुआ लोहा सांचे में डाल दिया जाता है यहां पर ठंडा होकर ठोस बन जाता है इसे कच्चा लोहा कहते हैं।
भौगोलिक कारक- इसके अंतर्गत निम्नलिखित तत्त्वों को शामिल किया जाता है-

कच्चा माल
उद्योग सामान्यतः वहीं स्थापित किये जाते हैं जहाँ कच्चे माल की उपलब्धता होती है। जिन उद्योगों में निर्मित वस्तुओं का भार, कच्चे माल की तुलना में कम होता है, उन उद्योगों को कच्चे माल के निकट ही स्थापित करना होता है। जैसे- चीनी उद्योग। गन्ना भारी कच्चा माल है जिसे अधिक दूरी तक ले जाने से परिवहन की लागत बहुत बढ़ जाती है और चीनी के उत्पादन मूल्य में वृद्धि हो जाती है।
लोहा और इस्पात उद्योग में उपयोग में आने वाले लौह-अयस्क और कोयला दोनों ही वज़न ह्यस और लगभग समान भार के होते हैं। अतः अनुकूलनतम स्थिति कच्चा माल व स्रोतों के मध्य होगी जैसे जमशेदपुर।

शक्ति (ऊर्जा)
उद्योगों में मशीन चलाने के लिये शक्ति की आवश्यकता होती है। शक्ति के प्रमुख स्रोत- कोयला, पेट्रोलियम, जल-विद्युत, प्राकृतिक गैस तथा परमाणु ऊर्जा है। लौह-इस्पात उद्योग कोयले पर निर्भर करता है, इसलिये यह उद्योग खानों के आस-पास स्थापित किया जाता है। छत्तीसगढ़ का कोरबा तथा उत्तर प्रदेश का रेनूकूट एल्युमीनियम उद्योग विद्युत शक्ति की उपलब्धता के कारण ही स्थापित हुए हैं।

श्रम
स्वचालित मशीनों तथा कंप्यूटर युग में भी मानव श्रम के महत्त्व को प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता। अतः सस्ते व कुशल श्रम की उपलब्धता औद्योगिक विकास का मुख्य कारक है।
जैसे- फिरोजाबाद में शीशा उद्योग, लुधियाना में होजरी तथा जालंधर व मेरठ में खेलों का सामान बनाने का उद्योग मुख्यतः सस्ते कुशल श्रम पर ही निर्भर है।

परिवहन एवं संचार
कच्चे माल को उद्योग केंद्र तक लाने तथा निर्मित माल की खपत के क्षेत्रों तक ले जाने के लिये सस्ते एवं कुशल यातायात की प्रचुर मात्रा में होना अनिवार्य है। मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली जैसे महानगरों में औद्योगिक विकास मुख्यतः यातायात के साधनों के कारण ही हुआ है।

बाज़ार
औद्योगिक विकास में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका तैयार माल की खपत के लिये बाज़ार की है।

सस्ती भूमि और जलापूर्ति
उद्योगों की स्थापना के लिये सस्ती भूमि का होना भी आवश्यक है। दिल्ली में भूमि का अधिक मूल्य होने के कारण ही इसके उपनगरों में सस्ती भूमि पर उद्योगों ने द्रुत गति से विकास किया है।

उपर्युक्त भौगोलिक कारकों के अतिरिक्त पूंजी, सरकार की औद्योगिक नीति, औद्योगिक जड़त्व, बैंकिग तथा बीमा आदि की सुविधा ऐसे गैर-भौगोलिक कारक हैं जो किसी स्थान विशेष में उद्योगों की स्थापना को प्रभावित करते हैं।