अर्थसास्त्र 





    प्रश्न-व्यष्टि अर्थसास्त्र का महत्व बताइए?

    उत्तर-व्यष्टि अर्थशास्त्र के महत्व को निम्न बिन्दुओ के अन्तर्गत स्पस्ट किया जा सकता है-

     1. सूक्ष्म अर्थसास्त्र से विशिस्ट आर्थिक इकइयो को अपने अपने क्षेत्र में आर्थिक व्यव्हार के सम्बन्ध में उचित निर्णय करने में सहायता मिलती है|

    2.सूक्ष्म अर्थसास्त्र के अंतर्गत एक व्यक्ति,एक फर्म,एक उधोग आदि अनेक व्यक्तिगत इकइयो से संबंधित उपभोग,विनियोग,आय,व्यय,बचत आदि|

    3. सूक्ष्म अर्थसास्त्र को कल्याण की दसाओ के परिक्षण हेतु प्रयोग में लाया जाता है|

    4.जब सरकार विशिस्ट इकइयो जैसे वस्त्र उधोग चमड़ा उधोग आदि के संवंध में आर्थिक निति निर्मित करती है तो इसमें सूक्ष्म अर्थ्ससस्त्र सहायक होता है| 

    प्रश्न-2 मांग की लोच क्या है? मांग की लोच को प्रभावित करने वाले तत्वों का वर्णन कीजिये मांग की लोच का व्यावहारिक महत्व क्या है-

    उत्तर-माँग की लोच का आशय एवं परिभाषा-

    माँग का नियम यह बताता है कि वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होने से किस मांग कि प्रवर्त्ति किस दशा में होगी लेकिन मांग का नियम यह नहीं बताता है कि वस्तु के मूल्य में अल्प परिवर्तन होने से उसकी माँग में अधिक परिवर्तन क्यों होता है, जबकि अन्य वस्तु के मूल्य में उतने ही परिवर्तन का उसकी माँग पर कुछ प्रभाव नहीं होता। इस आर्थिक घटना कि व्याख्या करने हेतु मार्शल ने अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक नया विचार दिया, जिसे माँग की लोच का नाम दिया|



    ‘लोच' से अर्थ हैं, किसी वस्तु में घुटने बढ़ने की शक्ति होने से| उदाहरण के लिए रबड़ की लोचदार कहते हैं, क्योंकि दबाव पड़ने पुर वह बढ़ जाता हैं और दबाव हटा लेने पर सिकुड़ जाता है| लोच दो बातों पर निर्भर होती है - 1. वस्तु के स्वभाव पर और 2. उस पर पड़ने वाले दबाव पर। यदि किसी वस्तु का स्वभाव लचीला नहीं है, तो बहुत दबाव पड़ने पर भी कम बढ़ेगा। यही बात वस्तुओं की माँग के सम्बन्ध में है। कुछ वस्तएँ ऐसी होती हैं कि मूल्य परिवर्तनों का उनकी माँग पर बहुत अधिक असर पड़ता है, जबकि कुछ वस्तुओं की माँग पर कम प्रभाव पड़ता है, यदि किसी वस्तु की माँग पर मूल्य के परिवर्तन का अधिक प्रभाव पड़ता है, तो उसे अर्थशास्त्र में ‘लोचदार मांग’ और यदि मांग पर मूल्य परिवर्तनों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, तो उसे 'बेलोच मॉग' कहते हैं।

    प्रो. मेयर्स के शब्दों में - ‘माँग की लोच कीमत में हुए थोडे से परिवर्तन के प्रत्युत्तर में खरीदी गयी मात्रा में होने वाले सापेक्षिक परिवर्तन का माप हैं, जो कि कीमत के परिवर्तन में भाग देने पर आये।'

    माँग की लोच के प्रकार

    1. लोचदार माँग - लोचदार माँग का अर्थ है कि जिस अनुपात में किसी वस्तु के मूल्य में परिवर्तन होता है, उसी अनुपात में वस्तु की मॉग में भी परिवर्तन होता है। माना किसी वस्तु के मूल्य में 20% परिवर्तन होता है, तो उसकी माँग में भी 20% परिवर्तन हो जायेगा। लोचदार माँग की वक्र रेखाचित्र में प्रदर्शित की गयी है।


    2. अधिक लोचदार माँग - जब वस्तु की माँग में परिवर्तन इसके मूल्य में होने वाले परिवर्तन से ज्यादा अनुपात में होता है, तो उसे अधिक लोचदार माँग कहते हैं। विलासिता की वस्तुओं की मॉग अधिक लोचदार हुआ करती है। इस बात को एक उदाहरण से भी समझाया। जा सकता है। माना कि किसी वस्तु के मूल्य में 40% वृद्धि होने पर उसकी माँग में 80% वृद्धि हो जाती है। यही अधिक लोचदार माँग है। अधिक लोचदार माँग की वक्र रेखा चित्र में प्रदर्शित की गयी है।

    3. पूर्णतया लोचदार माँग - किसी वस्तु के मूल्य में बिना परिवर्तन हुए; अत्यन्त सूक्ष्म परिवर्तन होने पर ही समस्त माँग में यदि बहुत ज्यादा वृद्धि या कमी हो जाती है, तो इसे पूर्णतया लोचदार मॉग कहते हैं। इस प्रकार की मॉग का वास्तविक जीवन में कोई महत्व नहीं होता। पूर्णतया लोचदार माँग की वक्र रेखा को चित्र में प्रदर्शित किया गया है।

    4. बेलोच माँग - जब किसी वस्तु की माँग में परिवर्तन इसके मूल्य में परिवर्तन के अनुपात में बहुत कम होता है, तो उसे बेलोचदार माँग कहते हैं। अनिवार्य आवश्यकताओं की लोच इसी प्रकार की होती है । बेलोचदार माँग की वक्र रेखा चित्र में प्रदर्शित की गयी है।




    5. पूर्णतया बेलोचदार माँग - यह पूर्णतया लोचदार माँग के विपरीत होती है। जब किसी वस्तु के मूल्य में काफी परिवर्तन होने पर भी इसकी माँग में कोई बदलाव नहीं होता या काफी सूक्ष्म परिवर्तन होता है, तब इसे पूर्णतया बेलोचदार माँग कहते हैं। यह माँग की लोच भी केवल काल्पनिक है । व्यावहारिक जीवन में इस तरह की लोच नहीं पायी जाती है । यह चित्र में दिखाया गया है।