जीएसटी क्या है? | फुल फॉर्म, अर्थ, नियम और फायदे | GST in Hindi

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 जीएसटी क्या है? | फुल फॉर्म, अर्थ, नियम और फायदे | GST in Hindi



भारत में अब सामान (Merchandise) या सेवा (Administrations) के कारोबार पर GST टैक्स चुकाना पड़ता है। 1 जुलाई 2017 से पूरे देश में GST कानून लागू हो चुका है। तब से अब तक, 6 साल से अधिक टाइम बीत जाने के बावजूद, इसकी बहुत सी बातें, सामान्य लोगों को समझ में नहीं आतीं। इस समस्या को ध्यान में रखते हुए, हमने जीएसटी पर आसान भाषा में, यह लेख तैयार किया है।


इस लेख में, हम जानेंगे कि GST क्या है? इसका फुल फॉर्म क्या होती है? GST का हिंदी में अर्थ या मतलब (Meaning) क्या होता है? जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराना किसे अनिवार्य है? इनके अलावा भी जीएसटी के बारे में प्रमुख व महत्वपूर्ण तथ्यों की जानकारी इसमें शामिल की है। About GST in Hindi language

जीएसटी क्या है ? What is GST in Hindi?

जीएसटी का Full Structure होता है-Labor and products Expense । हिन्दी में इसका अर्थ होता है-माल एवं सेवा कर। इसे, वस्तुओं की खरीदारी करने पर या सेवाओं का इस्तेमाल करने पर चुकाना पड़ता है। पहले मौजूद कई तरह के टैक्सों (Extract Obligation, Tank, Section Assessment, Administration Duty वगैरह ) को हटाकर, उनकी जगह पर एक टैक्स GST लाया गया है। भारत में इसे 1 जुलाई 2017 से लागू किया गया है। सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में यह सिस्टम लागू हो चुका है।

पहले के टैक्स सिस्टम में क्या थी खामी

1 जुलाई 2017 के पहले, देश और राज्यों में कई अलग-अलग तरह के टैक्स सिस्टम लागू थे। कारोबारियों को उत्पादन से लेकर बिक्री तक के बीच में, अलग-अलग स्टेजों पर, तरह के टैक्सों का भुगतान करना पड़ता था। उदाहरण के लिए, जैसे ही माल Manufacturing plant से निकलता था, सबसे पहले उस पर उत्पाद शुल्क (Extract Obligation) चुकाना पड़ता था। कई सामानों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (Extra Extract Obligation), अलग से लगता था। वही माल अगर एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजा जा रहा है तो राज्य में घुसते ही Section Expense लगता था। इसके बाद जगह-जगह चुंगियां अलग से।


माल बेचते समय, Deals Expense या Tank चुकाना पड़ता था। कई मामलों में Buy Assessment भी लगता था। अगर कोई सामान विलासिता (Extravagance) की श्रेणी में आता है तो Extravagance Duty अलग से चुकाना पड़ता था। वह सामान अगर किसी होटल या रेस्टोरेंट आदि में उपलब्ध कराया जा रहा हो तो Administration Expense अलग से देना पड़ता था।


इस प्रकार हम देखते हैं कि, फैक्टरी से लेकर उपभोक्ता (Shopper) के हाथों में पहुंचने तक किसी सामान या सेवा को कई तरह की Obligations या Assessments से गुजरना पड़ता था। GST लागू करके कारोबारियों को Charges के इस मकड़जाल से बचाने की कोशिश की गई है, और सभी पर एक ही तरह का टौक्स लागू कर दिया गया है।

जीएसटी लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी?

भारतीय संविधान में Charge संबंधी जो पुराने नियम थे, उनमें वस्तुओं के उत्पादन (Creation/Assembling) और सेवाओं पर टैक्स लगाने का अधिकार केंद्र सरकार (Focal Government) के पास था। जबकि,वस्तुओं की बिक्री (Deal) पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्य सरकारों (State Government) को दिया गया था।


सबने अपने-अपने हिसाब से Charge बनाए और Classes तय कर दीं। इसी चक्कर में एक-एक सामान पर कई-कई Expense लद गए। कभी-कभी तो टैक्स के उपर Duty के हालात भी बन गए। छोटे व्यापारियों और कंपनियाें के लिए, इनके नियम-कानूनों से निपटना बड़ा मुश्किल काम था।

इन विसंगतियों को दूर करने के लिए GST को ऐसे एकीकृत कानून के रूप में लाया गया है, जो माल एवं सेवा दोनों पर लग सके। और, जिसे Creation से लेकर Deal तक लगाया जा सके।

Creation और Deal का अलग-अलग पेंच खत्म करने के लिए GST का सिर्फ एक आधार तय कर दिया गया, Supply। इसके लिए बाकायदा Assessment कानूनों में बदलाव किया गया और संसद में बाकायदा संविधान संशोधन (Constitution (Correction) की प्रक्रिया अपनाई गई।

जीएसटी की प्रमुख विशेषताएं | Significant Highlights Of GST

देश में मौजूद पुराने टैक्स सिस्टम की खामियां दुरुस्त करने के लिए, ही सरकार ने GST लागू किया। जुलाई 2017 से लागू इस नए टैक्स सिस्टम की प्रमुख खासियतें इस प्रकार हैं —


1.उत्पादन की बजाय उपभोग पर टैक्स | Charge on Utilization

GST सिस्टम में, टैक्स की वसूली तब होती है, जब कोई सामान (merchandise) या सेवा (administration) को बेचा जाता है। वस्तु या सेवा की अंतिम कीमत में उस पर निर्धारित GST टैक्स भी शामिल होता है। वस्तु या सेवा की सप्लाई देने वाला (vender), इसे सप्लाई लेने वाले (Purchaser) से वसूलता है। बाद में इसे सरकार के खाते मे जमा कर देता है। मतलब यह कि, GST की वसूली की जिम्मेदारी सामान या administration देने वाले पर होती है। किसी वस्तु या सेवा के साथ, जितनी बार खरीद-बिक्री की प्रक्रिया होगी, हर बार GST चुकाना होता है।

2. इनपुट क्रेडिट सिस्टम से टैक्स वापसी | Information Credit Framework

किसी वस्तु के उत्पादन से लेकर, अंतिम उपभोक्ता के हाथ पहुंचने तक कई बार खरीदे-बेचे जाने की प्रक्रिया होती है। अब चूंकि, GST सिस्टम में, हर खरीद-बिक्री पर टैक्स चुकाना पड़ता है। ऐसे में, वस्तु, अंतिम उपभोक्ता तक पहुंचने तक बहुत महंगी हो जानी चाहिए। लेकिन ऐसा होता नहीं है। क्योंकि इसमें Information Credit Framework लागू होता है। इस सिस्टम में, आ खिरी स्टेज पर टैक्स लगने से पहले जहां-जहां Expense जमा किया गया है,उसको वापस पाने की भी व्यवस्था है।

र महीने GST रिटर्न भरने के दौरान आप Tax reduction Framework के माध्यम से अपना GST एडजस्ट करा सकते हैं। ये Tax break Framework क्या है, इसको अलग से हमने Model के साथ नीचे समझाया है।


3. टैक्स के ऊपर टैक्स नहीं चढ़ेगा | No Flowing Of Expenses

GST के पहले जो टैक्स व्यवस्था लागू थी, उसमें न सिर्फ एक वस्तु पर, कई अलग-अलग Duty लगते थे, बल्कि कई मामलों में, टैक्स के ऊपर Assessment भी लग जाते थे। ऐसा इसलिए होता था, क्योंकि बहुत सी वस्तुएं दो या दो से अधिक तरह की Classifications में आ जाती थीं। अब ये दिक्कत खत्म हो गई है। क्योंकि अब GST अंतिम रूप से Purchaser को ही अदा करना है। बीच में अगर किसी को GST चुकाना पड़ा है तो, उसका पैसा टैक्स क्रेडिट सिस्टम से Change हो जाता है।

4. पूरी तरह ऑनलाइन सिस्टम | पकड़ में आ जाएगी गड़बड़ी

GST सिस्टम में सारे सौदों की जानकारी On the web अपडेट रखनी है। हर सौदे की रसीद, सप्लाई लेने वाले और सप्लाई देने वाले, दोनों के पास रहेगी। दोनों अपनी-अपनी रसीदों की मदद से Tax break पा सकेंगे। सौदों का मिलान न हुआ तो On the web ही गडबड़ी पकड़ में आ जाएगी। हर स्टेज पर GST जमा होने की जिम्मेदारी उपर वाले कारोबारी की होने से Assessment भुगतान की चेन नहीं टूटेगी। क्योंकि कोई भी कारोबारी अपने Credit का नुकसान नहीं करना चाहेगा।

5. बड़े कारोबारियों के लिए E-Invoicing अनिवार्य

1 जनवरी 2023 से सभी ऐसे कारोबारियों के लिए, इलेक्ट्रॉनिक रसीदें (E-Invoicing) जारी करना अनिवार्य कर दिया गया है, जिनका सालाना टर्न ओवर 5 करोड़ रुपए है। आगे चलकर 1 अप्रैल 2023 से यह व्यवस्था 1 करोड़ के टर्नओवर वाले करोबारियों पर भी लागू हो जाएगी।

टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता बढ़ाने और टैक्स चोरी रोकने के मकसद से यह  E-Invoicing की व्यवस्था लागू की जा रही है। खासकर इससे फर्जी बिल बनाकर इनपुट टैक्स क्रेडिट लेने वालों पर लगाम लगेगी। 

6. टैक्स रेट पर मनमानी नहीं | No Inconsistent Rates

GST के रेट में किसी तरह के बदलाव के लिए जीएसटी परिषद (GST Board) बनाई गई है। केंद्रीय वित्त मंत्री (Focal Money Priest) इस परिषद के अध्यक्ष होंगे। सभी राज्यों के वित्त मंत्री भी इसके सदस्य होंगे। जीएसटी काउंसिल के किसी किसी फैसले पर, केंद्र के पास एक तिहाई शक्ति Vote की शक्ति होगी, और दो-तिहाई शक्ति राज्य सरकारों के पास होगी। हर राज्य की Casting a ballot Influence बराबर होगी। परिषद के किसी भी फैसले को मंजूरी मिलने के लिए उसे Gathering के तीन चौथाई Votes की जरूरत होगी।

जीएसटी सबके लिए फायदेमंद कैसे? How advantageous for all

GST सिस्टम लागू होने से, टैक्स सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ गई है। इससे एक तरफ सरकार को सुविधा हो गई है, वहीं दूसरी तरफ, कारोबारियों और उपभोक्ताओं के लिए भी यह फायदेमंद होगा। आइए समझते हैं, कैसे-

सामान्य लोगों के लिए फायदे | Benefits for Average folks

  • वस्तुओं पर तरह-तरह के Charge से छुटकारा मिल गया है। टैक्स के उपर Assessment खत्म होने से वस्तुओं की लागत में अनावश्यक बढ़ोतरी नहीं हो पाती। इससे सामान्य उपभोक्ता के यह फायदे की स्थिति है।
  • जीवन के लिए बहुी ज्यादा जरूरी चीजों पर Charge के Rate कम रखे गए हैं। इससे सामान्य लोगों के ज्यादा काम आने वाली चीजें सस्ते में मिल सकेंगी। गरीब और कम आमदनी वाले लोगों को राहत रहेगी।
  • कारोबार का ज्यादा से ज्यादा हिस्सा GST के दायरे में आ जाने से सरकार की आमदनी बढ़ेगी। इससे शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन जैसी आम लोगों की सुविधाओं में सुधार के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।

व्यवसायियों के लिए फायदे | Benefits for Finance managers

  1. हर राज्य में Charges का अलग-अलग ढांचा होने से, सामान कारोबारियों के लिए, उसे समझना आसान नहीं था। तरह-तरह की चुं गियां अलग से बोझ बढ़ाती थीें। टैक्स अधिकारी और कर्मचारी भी नियमों की पेचीदगियों का गलत फायदा उठाते थे। अब कारोबारियों को इन झंझटों से नहीं गुजरना पड़ेगा। कारोबार आसान और तेज गति से होगा। इससे फायदे की मात्रा भी बढ़ेगी।
  2. GST सिस्टम में कारोबार संबंधी सारे Reports ऑनलाइन होते हैं। किसी तरह की गलती होने पर या Record खो जाने पर उसे On the web ही सुधारने की सुविधा होगी। कारोबारियों को बेमतलब, दफ्तरों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
  3. लघु उद्योगों और उद्यमियों को बढ़ावा देने के लिए, केंद्र व राज्य सरकारें रियायत देती हैं। इसका फायदा उठाने के लिए बड़े कारोबारी भी अपने बड़े उद्यम को ही कई छोटे-छोटे हिस्सों में करके दिखाते थे। GST सिस्टम में, इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी। कंपनियां ज्यादा सस्ता और प्रतियोगी माल बना सकेंगी। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में टक्कर देने लायक माल बनाया जा सकेगा।

सरकार व प्रशासन को मिलने वाले फायदे | For Government And Organization

  • पहले जो सिस्टम था, उसमें Market का बहुत बड़ा हिस्सा अंडर ग्राउंड होता था। वस्तुओं के उत्पादन से लेकर बिक्री तक की श्रृंखला में बहुत सी जगहों पर काम दिखाया ही नहीं जाता था। उन पर Duty भी सरकार को नहीं मिल पाता। अब GST में ऐसे छूटे लोग भी Assessment की इस चेन में जुड़ जाएंगे। इससे टैक्स चोरी की गुंजाइश कम हो जाएगी और सरकार की Pay बढेगी।
  • हर स्टेज पर खरीदारी और बिक्री की रसीदों का मिलान होना जरूरी होगा। तभी पहले के Stages में जमा किया गया Tax break का फायदा कारोबारियों को मिल सकेगा। इस चेन में चूंकि हर किसी को Bill देना और बाद में उनकी रसीद पेश करना जरूरी होगा। इसलिए Market पूरी तरह Accounted हो जाएगा और Bootleg market पर लगाम लगेगी।
  • पहले जो टैक्स सिस्टम था, उसमें एक ही वस्तु, अगल-अलग राज्यों में अलग-अलग दाम पर मिलती थी। कुछ लोग इसका फायदा उठाते थे और आसपास के राज्यों से सस्ते सामान की तस्करी करने लगते थे। अब पूरे देश में एक जैसा टैक्स होने से वस्तुओं के दाम एक जैसे होंगे। इससे तस्करी पर लगाम लगेगी।
  • Charges की संख्या कम होने से केन्‍द्र और राज्‍य के अधिकारियों और कर्मचारियों पर भार कम होगा। Enrollment और Expense भुगतान संबंधी सारे Detail ऑनलाइन होने से निगरानी बहुत आसान होगी। Recuperation की लागत में कमी आएगी। सरकारों के लिए Assessment Organization और The executives का काम बहुत आसान हो जाएगा।

GST ने किन-किन टैक्सों को खत्म कर, उनका स्थान लिया?

देश और राज्यों में वस्तुओं और सेवाओं पर लगने वाले तीन दर्जन से अधिक Indirect Taxes को अब GST के अंदर शामिल कर दिया गया है। इन टैक्सों की सूची हम नीचे दे रहे हैं।

केंद्र के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी ने ले ली है (Central Taxes Replaced By GST)राज्यों के वो टैक्स जिनकी जगह जीएसटी ने ले ली है (State Taxes Replaced By GST)
  • केंद्रीय उत्पाद शुल्क (Central Excise Duty)
  • मेडिकल और टॉयलट संबधी निर्माण पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क Duties of Excise (medical and Toilet preparations)
  • विशेष महत्व की वस्तुओं पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क ( Additional Duties of Excise on Goods of special importance
  • सूती वस्त्र व संबंधित उत्पादों पर अतिरिक्त उत्पाद शुल्क Additional Duties of Excise (Textiles and textile products)
  • कस्टम ड्यूटी Duties of Customs (CVD)
  • विशेष कस्टम डयूटी (Special Additional Duty of Customs-SAD)
  • सर्विस टैक्स (Service Tax)
  • सेस और सरचार्ज (Cesses and surcharges)
  • (वैट)State VAT
  • (केंद्रीय बिक्री कर) Central Sales tax
  • खरीद कर(Purchase Tax)
  • विलासिता कर (Luxury Tax)
  • प्रवेश कर (Entry Tax) सभी प्रकार के
  • मनोरंजन कर (Entertainment Tax) जो स्थानीय निकायों के अलावा लगते थे
  • (विज्ञापन कर) Taxes on advertisements
  • लॉटरी, सटटा और जुआं पर टैक्स (Taxes on lotteries, betting and gambling)
  • उपकर और अधिभार State cesses and surcharges

चार अलग-अलग नामों से वसूला जाता है GST टैक्स

जीएसटी वैसे तो एक ही टैक्स होता है, लेकिन, इसे चार अलग-अलग नामों से लिया जाता है-

CGST: (सेन्ट्रल गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Focal Merchandise and Administration Expense)

अगर कोई सौदा (लेन-देन) एक ही राज्य के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो केंद्र सरकार के हिस्से के रूप में CGST को चुकाना पड़ता है।

SGST: स्टेट गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | State Merchandise and Administration Expense

अगर कोई सौदा (लेन-देन) एक ही राज्य के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो, उस राज्य सरकार के हिस्से के रूप में SGST चुकाना पड़ता है।

UTGST/UGST: यूनियन टेरेटरी गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Association Domain Products and Administration Expense

अगर कोई सौदा (लेन-देन), किसी केंद्र शासित राज्य (UT) के दो पक्षों (कारोबारियों) के बीच हो रहा हो तो, उस केंद्र शासित राज्य के हिस्से के रूप में UTGST चुकाना पड़ता है। इसी को UGST भी कहते हैं।

IGST: इंटिग्रेटेड गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स | Coordinated Merchandise and Administration Duty

अगर कोई सौदा (लेन-देन), दो अलग-अलग राज्यों के कारोबारियों के बीच हो तो, केंद्र सरकार और राज्य सरकार, दोनों का हिस्सा, एकसाथ IGST के रूप में लगता है। यह पहले पूरा केंद्र सरकार के पास जाता है। बाद में इसमें उस राज्य को आधा हिस्सा मिलता है, जहां सप्लाई भेजी जाती है।

जीएसटी की 5 तरह की दरें | 5 sorts of GST Rates

GST Committee ने अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं के लिए जीएसटी के कुल पांच स्लैब मंजूर किए हैं। ये हैं-

  • 00% GST : जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि अनाज, नमक, गुड़, ताजी सब्जियां वगैरह।
  • 05% GST : जीवन के लिए सामान्य आवश्यक वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि चीनी, तेल, मसाले, चाय, काफी, उर्वरक वगैरह।
  • 12% GST : रोजमर्रा के जीवन में काम आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि नमकीन, दंतमंजन, छाता, दवाइयां, वगैरह।
  • 18% GST : मध्यम स्तर का जीवन जीने वाले लोगों के इस्तेमाल में आने वाली वस्तुएं जैसे कि डिटरजेंट, चॉकलेट, मिनरल वाटर, आइसक्रीम, शैंपू, रेफ्रिजरेटर वगैरह।
  • 28% GST : विलासी और हानिकारक श्रेणी में आने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर, जैसे कि-पान मसाला, ऑटोमोबाइल, फाइव स्टार होटल में ठहरना वगैरह।
Note: अति आवश्यक वस्तुओं पर कम से कम Duty लगाकर और विलासी व जीवन के लिए कम महत्व वाली वस्तुओं पर ज्यादा से ज्यादा Assessment लगाकर जीएसटी को ज्यादा से ज्यादा न्यायपूर्ण बनाने की कोशिश की गई है। जबकि कच्चा माल मसलन अनाज और ताजी सब्जियों आदि पर Zero टैक्स तय किया गया है। इसी प्रकार Instruction और Wellbeing सुविधाओं को Expense के दायरे से बाहर रखा गया है।


Input Tax reduction के माध्यम से दोहरे टैक्स भुगतान से बचाव

यहां हम देखते हैं कि माल की खरीदारी के क्रम में  GST तो सबने अदा किया। पहले Entire Saler ने, फिर Retailer ने और फिर Customer ने। तो फिर जो पहले बताया गया कि सिर्फ Buyer जीएसटी अदा करेगा, उसका क्या Funda है? आइए समझते हैं।

दरअसल Entire Saler और Retailer ने अपनी बारी में जो GST जमा किया था, उसे वो आगे चलकर Tax reduction के माध्यम से सरकार से वापस पा सकते हैं। जीएसटी का Month to month Return भरते समय वे इसे अपने उपर बन रही देनदारी में Change करा सकते हैं।

ये जो टैक्स के Change होने की प्रक्रिया है इसे ही जीएसटी में Tax reduction Framework नाम दिया गया है। इस Tax break की व्यवस्था का फायदा बीच के स्टेजों में आने वाले व्यवसायी तभी उठा पाएंगे, जबकि उनके पास उन स्टेजों पर की गई बिक्री की रसीद हों।

क्योंकि जो खरीदार होगा, उसकी भी रसीदें सरकार के पास On the web मौजूद होंगी और जिसने बेचा है उसकी भी। जब दोनों स्तर की रसीदों का मिलान सही होगा, तभी उन बीच वाले व्यवसायियों को Tax reduction का फायदा मिल सकेगा।


जीएसटी रजिस्ट्रेशन लेना किन कारोबारियों के लिए अनिवार्य

जीएसटी रजिस्ट्रेशन कराने की अनिवार्यता, दो शर्तों के हिसाब से निर्धारित की गई है-

सामान्य कारोबारियों के लिए टर्नओवर लिमिट के हिसाब से
सामान्य राज्यों के कारोबारियों को सालाना 40 लाख रुपए टर्नओवर होने पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है। (विशेष राज्यों को छो़ड़कर बचे सभी राज्यों को सामान्य राज्य माना गया है। विशेष राज्यों के नाम इसी पैराग्राफ में नीचे दिए गए हैं)
विशेष राज्यों के कारोबारियों को सालाना 20 लाख रुपए टर्नओवर होन पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य है (विशेष राज्यों के नाम नीचे लिस्ट में देखें)
  1. जम्मू और कश्मीर
  2. असम
  3. अरुणाचल प्रदेश
  4. मणिपुर
  5. मेघालय
  6. मिजोरम
  7. नगालैंड
  8. सिक्किम
  9. त्रिपुरा
  10. उत्तराखंड
  11. हिमाचल प्रदेश

जीएसटी  रिटर्न के प्रकार। किसे कौन सा भरना पड़ता है?

किसी वित्त वर्ष के दौरान, जो भी आप खरीद और बिक्री करते हैं, उसका विवरण सरकार को देना पड़ता है। ये विवरण आप जीएसटी रिटर्न फॉर्म में भरकर जमा करते हैं। अलग-अलग कैटेगरी के व्यवसायियों को अलग-अलग तरह के जीएसटी रिटर्न फॉर्म भरकर जमा करने पड़ते हैं। नीचे हम GST के सभी रिटर्न का अलग-अलग परिचय दे रहे हैं।

GSTR-1

सभी सामान्य जीएसटी रजिस्ट्रेशन वाले कारोबारियों और relaxed available people को यह रिटर्न दाखिल करना पड़ता है। जिन्होंने जीएसटी की QRMP स्कीम ( Quarterly Return Recording and Regularly scheduled Installment of Charges) अपना रखी है, उन्हें हर तिमाही पर रिटर्न फॉर्म GSTR-1 भरकर जमा करना पड़ता है और जिन्होंने QRMP स्कीम नहीं अपना रखी है, उन्हें हर महीने GSTR-1 रिटर्न फॉर्म भरकर जमा करना पड़ता है।

उल्लेखनीय है कि 5 करोड़ रुपए से कम सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी की QRMP स्कीम अपनाने की छूट है। विस्तार से जानें:GST की QRMP स्कीम क्या है ? इसके क्या फायदे हैं?

GSTR-2 और GSTR-3 (फिलहाल स्थगित)

GSTR-2 और GSTR-3 को दोनों रिटर्न पर फिलहाल सरकार ने रोक लगा रखी है। शुरुआती दौर में कारोबारियों को जीएसटी सिस्टम की ज्यादा जटिलताओं से बचाने के लिए सरकार ने इन्हें स्थगित कर दिया है। इन्हें स्थायी तौर बर भी बंद किया जा सकता है। इसलिए इनका ज्यादा डिटेल्स हम यहां नहीं देंगे। लेकिन, पाठकों की जानकारी के लिए इतना बता देते हैं कि

GSTR-2 रिटर्न में हर महीने की खरीदारियों का विवरण भरकर जमा करना पड़ता।
GSTR-3 रिटर्न में हर महीने की बिक्रियों और खरीदारियों का संक्षिप्त विवरण देना पड़ता।
GSTR-3B
सभी जीएसटी रजिस्टर्ड सामान्य कारोबारियों को GSTR-1 से भी पहले GSTR-3B को भरकर जमा करना पड़ता है। इस रिटर्न फॉर्म में कारोबारियों को अपनी बिक्रियों और खरीदारियों का मोटा-मोटा संक्षेप में विवरण देना पड़ता है। साथ ही चुकाए गए टैक्स और इस्तेमाल की गई इनपुट क्रेडिट्स और टैक्स देनदारियों के बारे में भी जानकारी देनी पड़ती है।

जिन लोगों ने जीएसटी की QRMP स्कीम अपना रखी है, उन्हें हर तिमाही के कारोबार के लिए, फॉर्म GSTR-3B भरकर जमा करना पड़ता है। वहीं जिन लोगों ने QRMP स्कीम नहीं अपना रखी है, उन्हें हर महीने के कारोबार के लिए GSTR-3B रिटर्न भरकर जमा करना पड़ता है।

GSTR-4

जीएसटी के तहत, कंपोजिशन स्कीम लेने वाले कारोबारियों को प्रत्येक वित्त वर्ष के अंत में यह रिटर्न फॉर्म (GSTR-4) भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें आपको अपने कारोबार के सारे विवरण नहीं देने पड़ते और न ही रसीदें जमा करने का झंझट होता है। बस अपने टर्नओवर के हिसाब से एक फिक्स रेट पर जीएसटी टैक्स जमा कर देना पड़ता है।

GSTR-4 

ने शुरुआती दौर में निर्धारित किए गए GSTR-9A का स्थान ले लिया है, जोकि वित्त वर्ष 2019-20 तक, कंपोजिशन कारोबारियों के सालाना रिटर्न के रूप में होता था। पहले GSTR-4 को हर तिमाही पर भरना पड़ता था, जिसकी जगह पर अब CMP-08 के नाम से नया फॉर्म लागू कर दिया गया है।

उल्लेखनीय है कि 1.5 करोड़ तक सालाना टर्नओवर वाले कारोबारियों को जीएसटी में कंपोजिशन स्कीम लेने की छूट है। सिर्फ सेवा क्षेत्र में कारोबार करने वालों (specialist co-ops) को 50 लाख रुपए तक के टर्नओवर पर कंपोजिशन स्कीम अपनाने की छूट है। विस्तार से समझने के लिए देखें हमारा लेख: जीएसटी कंपोजिशन स्कीम क्या है ?

GSTR-5 और GSTR-5 A

विदेशी व्यवसायियों (non-occupant unfamiliar citizens) की ओर से भारत में कारोबार करने पर जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना पड़ता है। उन्हें हर महीने रिटर्न GSTR-5 दाखिल करना पड़ता है।
इसी तरह, विदेश से इंटरनेंट या नेटवर्किंग के माध्यम से सेवाएं देने वाले कारोबारियों को हर महीने GSTR-5 A रिटर्न फाइल करना पड़ता है। इन्हें Online Data and Information base Access or Recovery Administrations (OIDAR) कहते हैं। जैसे कि जैसे कि music video, motion pictures, digital books, online course,, cloud administration, information capacity वगैरह देने वाले विदेशी।

GSTR-6

जीएसटी में डिस्ट्रीब्यूटर्स या Input Administration Merchant (ISD) के रूप में काम करने वाले कारोबारियों को हर महीने के कारोबार का विवरण देने के लिए, रिटर्न फॉर्म GSTR-6 भरकर जमा करना पड़ता है। ISD के बारे में, विस्तार से जानने के लिए देखें : जीएसटी में इनपुट सर्विस डिस्ट्रीब्यूटर क्या है?

GSTR-7

जीएसटी सिस्टम में जिन व्यक्तियों या संस्थाओं को अपने भुगतानों पर  TDS काटने का अधिकार है, उन्हें हर महीने का हिसाब रिटर्न फॉर्म GSTR-7 में भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें उन्हे हर महीने काटे गए TDS का विवरण देना पड़ता है। साथ ही टीडीएस देनदारी और टीडीएस रिफंड का विवरण देना पड़ता है।

GSTR-8

जीएसटी में रजिस्टर्ड online business कंपनियों को हर महीने अपने कारोबार का विवरण रिटर्न फॉर्म GSTR-8 में भरकर जमा करना पड़ता है। इसमें उन्हें अपने internet business stage के माध्यम से की गई सप्लाई के साथ-साथ वसूले गए TCS (gather charge at source ) के डिटेल्स �

GSTR-9

जीएसटी में रजिस्टर्ड कारोबारियों को (कंपोजिशन स्कीम वालों को छोड़कर) हर वित्त वर्ष के बाद एक सालाना रिटर्न भी दाखिल करना पड़ता है। इसमें साल भर की बिक्री-खरीदारी के साथ-साथ टैक्स भुगतान के डिटेल्स देने पड़ते हैं। साल भर के दौरान जो भी मासिक (Month to month) और तिमाही (Quarterly) रिटर्न भरे गए होते हैं, उनका मिला-जुला लेखा इसमें होता है।







































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